AGNEEPATH अग्निपथ …
आम
लोगोंकी भीड से .. उसी भीड की आवाज बनकर एक इन्सान खडा होता है अक्सर
..अकेला …. किसी तपे हुवे कोयले के इंजिन सा धडधडाता हुवा वो आगे बढता है
..प्रतिशोध की आग से जलते हुवे अग्निपथ पंर.. जुल्म के एक एक तख्त तोडता
हुवा …आम आदमी के अश्रू.. स्वेद और रक्त की कीमत मांगता हुवा ..वो आम
आदमी के सुराज्य का परचम गाडता है ..इतिहास के सिनेमे ..उसी तरह जैसे संत
ज्ञानेश्वर ने किया धर्म पीठ को ललकार कर .. जैसे कृष्ण ने किया ..इंद्र को
ललकार कर ..जैसे शिवाजी महाराजने मुघल साम्राज्य को ललकार और डॉ. आंबेडकर
जी ने समाज व्यवस्था को ललकारकर… आम लोगोंकी भीड से खडे होने वाले इस
‘आम नायक’ ने ‘महाशक्तिशाली-खलनायक’ से टक्कर लेने की चुनौती हर बार ली
है … इस बार भी ..वो चल पडा है …प्रतिशोध के अग्निपथ पर ……
-अविनाश घोडके/ सह संवाद लेखक / अग्निपथ